Respected sir/madam
As per our conversion of previous bid, I place bid. I am waiting for award me. thanks .
आध्यात्म्
गंगा अवतरण के समय अविनाशी भोले बाबा का स्वरुप
-मुक्त्क-
खुला दरबार है जिसका, कही पर भी न ताला है।
खजाना भोले बाबा का अजब अनुपम निराला है।
कर मे त्रिशूल डमरु, शीश पर बहे गंग धारा,
कमर पर बांधकर सोहे, गले सर्पो की माला है।
(राम काज सीता जी का पता लगाकर लौटे हनुमान)
(छंद)
ह्रदय मे श्री राम निष्काम सेवा भाव लिया,
सिंधु गये लांघ राम भक्त हनुमान है।
वाटिका उजाड, दैत्य दल को पहाड,
घाय तंक को जराय, सारे तोडे अभिमान है ।
असर आँखो मे लगा कपि की कला का काँटा,
लंगा गयी डोल, कपि ऐसे बलवान है ।
राम चीना दे के संग सीस फूल लांये साथ,
माथ को नदाय खडे चतुर सुजान है ।
जग कपासी कर्म को मन तांत से ऐसे धनो ।
जिन्दगी की पाक चादर, प्रेम धागों से बनो ।
ओढकर जाना पडेगा, उस खुदा के सामने,
जरी-जरी बोलता है, रुह की बाते सुनो ।
वर्षो पुराना मौन हँसकर तोड दो ।
हम ही हम है ये समझना छोड दो ।
जिन्दगी खुद ही खुदा का नूर है,
प्रेम की पहिचान इसमे जोड दो ।